Monday 9 May 2016

नाम-गुन कऽ भेद

नाम-गुन कऽ भेद में
करि तनिक विचार,
मुँह भइल बा चोखा अस
बखरा ‘लूर’ अचार |
होशिला जी मधुशाला में
डालऽस रोज पङाव,
महंगू काका पनही टांकस
गिर गईल बा भाव |
जवाहिर के ठेकऽ ता
उमिर एक सौ तीन,
राजा बाबू रोजहाई में
काटऽ तारे दिन |
रामनिहोरा सनकी-मैन
देखते खूबे गारी,
बाबा तिलोकी जी घरे
कुकूर झाँके दुआरी |
जंगबहादुर घर में सूतस
होते सांझ-अन्हार,
फकीरचंद के भट्टा चले
एक, दूई नहिं चार |
भइल मंगरुआ पैदा
शनि अमावस दिन,
फौजी बाबा फरुहा लेके
खोभऽतारे जमीन |
‘आतुर वश कुकर्मा’
संतोषवा के ढंग,
भागमनी के लोग लईका
छोङ देले बा संग |
मनभरन से ऊब गइल
पूरा गाँव-जवार,
सादा भाई के जिनगी हऽ
जईसे चित्राहार |
तेतरी काकी गूटर-गु के
धइले बाङि राग,
चिखुरी के रास न आवे,
तेलहन, बथुआ-साग |
बनवारी के उङ गईल
जिनगी के सभ पात,
पूछे मुसाफिर अभिषेक से
कहाँ बितवलऽ रात ?
बंगाली जी करऽ ओझाई
घूमलऽ ना बंगाल,
चिरागन क लगल चलिसा
जाले रोज नेपाल |
अमरजीत के खूब पदावंस
लईका सुबह-शाम,
नन्दू कऽ माई यशोदा
उनकर बाबू श्याम |
भोला का भीतर-घौंसि
मन में कलह क्लेष,
रामरुप मरजादा लांघस
सतरंगी के भेष |
भुङूक जी अपना गाँवे
करऽतारे चुङकाहि,
सती-माई क धाम पऽ
होता अब ओझाई |
रामभरोसे खेती करंस
पाँवे फटल बेवाई,
निरोगी के जान ना बांचल
केतनो भईल दवाई |
निरहू भाई भोजपुरी में करऽतारे राज,
‘अभिषेक’ अब का होई
कइसे बाची ताज ?